Last modified on 29 मार्च 2021, at 23:47

वसंत ऋतु रो रूप सलोना / मुकेश कुमार यादव

वसंत ऋतु रो रूप सलोना।
महकी उठलै, वन कोना-कोना
महुआ गमकै।
छम-छम छमकै।
सखुआ, शीशम टोना।
वसंत ऋतु रो रूप सलोना।
गेहूँ, मटर, गुलाब।
केतना सरसौ लाजवाब।
तितली बनै खिलौना।
वसंत ऋतु रो रूप सलोना।
क्यारी-क्यारी रंग-बिरंग।
गमकै फूल, झलकै उमंग।
टोंगना-खेत आरो कोना।
वसंत ऋतु रो रूप सलोना।
कली-कली कचनार लगै।
चारों ओर बहार सजै।
हरा-भरा बिछौना।
वसंत ऋतु रो रूप सलोना।
घुंघट सरकै।

धक-धक धड़कै।
नैन बौराय बावरिया।
आस मिलन के सावरिया।
करतै जल्दी गौना।
वसंत ऋतु रो रूप सलोना।
कोयल चहकै।
बुलबुल बहकै।
महकै बाग़ बहार, की सुग्गा, की मैना।
वसंत ऋतु रो रूप सलोना।
कौवा लै संदेश, ऐलै।
पिया बसै परदेश, ऐलै।
ऐलै, तकिया-बिछौना।
वसंत ऋतु रो रूप सलोना।
परती खेत, आम के मंज़र।
आस लगाय छै, धरती बंजर।
मांटी उगलै, सोना।
वसंत ऋतु रो रूप सलोना।
बिरहन रंग विलाप करै।
काली कोयल मिलाप करै।
प्रणय-मिलन रो रोना।
वसंत ऋतु रो रूप सलोना।
घुंघट ओढ़ी गोरी बोलै।
नयी-नवेली छोरी बोलै।
खोलै झटपट दोना।
वसंत ऋतु रो रूप सलोना।