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वसन्त / संगम मिश्र

सज्जित वसुधा नर्तन करती,
जीवन रसमय हो जाता है।
मधुमय वसन्त सब ऋतुओं में,
इसलिए श्रेष्ठ कहलाता है॥

रतनार मनोहर सुमन खिले,
ठूँठे पलाश की डालों से।
कस्तूरी-सी मोहक सुगन्ध,
आयी मदमत्त तमालों से।
कुछ उष्मित हो मादक बयार,
भी बहने लगी मत्त होकर।
नव कोमल-कोमल बौर उगे,
मदमाते हुए रसालों से।

सतरङ्गी कुसुमित दृश्य निरख,
मन गीत मिलन के गाता है।
मधुमय वसन्त सब ऋतुओं में,
इसलिए श्रेष्ठ कहलाता है॥

चहुँ दिशि मृदु मादकता छायी,
कन्दर्प देव का वास हुआ।
सुन्दरी धरा से मिलने को
नीला निरभ्र आकाश हुआ।
जन-जन के प्रिय सहचरियों के,
गालों पर लाली उदित हुई।
रतिकूजित मादक किलकारी,
फूटी गद्गद भुजपाश हुआ।

प्रेमातुर प्रेमपंथियों में नव,
आकर्षण बढ़ जाता है।
मधुमय वसन्त सब ऋतुओं में
इसलिए श्रेष्ठ कहलाता है॥

सर्वत्र दीपता नव ही नव,
द्रुम दल से फूटे नव किसलय।
नव लाली ले विहँसा अशोक,
भँवरे गाते गुन-गुन नव लय।
वन बाग वाटिका उपवन नव,
अपने जर्जर परिधान त्याग।
नभचर करते हैं नव कलरव,
ऋतुराज तुम्हारी जय-जय जय।

निश्चय! स्वागत में सुरभित जग,
जगमग जगमग हो जाता है।
मधुमय वसन्त सब ऋतुओं में
इसलिए श्रेष्ठ कहलाता है॥

सज्जित वसुधा नर्तन करती,
जीवन रसमय हो जाता है।
मधुमय वसन्त सब ऋतुओं में,
इसलिए श्रेष्ठ कहलाता है॥