और ये वसन्त की हवाएँ
दक्षिण से नहीं चारों ओर खुली-खुली चौड़ी सड़कों से आएँ
धूल, और एक जाना हुआ शब्द
जैसे मेरे लिखे लेख, पत्र, कविताएँ
काग़ज़ के साफ़-साफ़ बड़े-बड़े पेज वहाँ उड़ते हों ।
और ये वसन्त की हवाएँ
दक्षिण से नहीं चारों ओर खुली-खुली चौड़ी सड़कों से आएँ
धूल, और एक जाना हुआ शब्द
जैसे मेरे लिखे लेख, पत्र, कविताएँ
काग़ज़ के साफ़-साफ़ बड़े-बड़े पेज वहाँ उड़ते हों ।