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वसीयत / शलभ श्रीराम सिंह

गहराईयों में डूबते महासागर !
हाँफती बदलियाँ !
आकाश के माथे की शिकन !
गये हुए वसन्त की वापसी के नाम !

मेले में भटके हुए शिशु से
दिवस-मास-वर्ष
न बोलने की सौगन्ध खाकर बैठ माटी ।
बाँसुरी के आकुल रंध्र ।
सिवानों की साँझ ।
नये गीत और नई ज़िन्दगी के नाम !

सुबह की कच्ची धूप ।
दूब के होठों पर कुनमुनाती शबनम ।
नम-रेतीली घाटियाँ ।
अस्थिर-अनिश्चित दिशायें
शास्वत गतिशील पाँवों के नाम !
(१९६३)