जहाँ से शुरु होती है
ज़िन्दगी की सरहद
अभी तक वहाँ
पहुँच नहीं पा रहे हैं शब्द
जहाँ कुँवारे कपास की तरह
कोरे सफ़ेद पन्नों पर
दर्ज कर रहे हैं
कवि
अपने सुख-दुख
वहाँ से बहुत दूर हैं
दण्डकारण्य में बिखरे
ख़ून के अक्षर
दूर बस्तर और दन्तेवाड़ा में
नौगढ़ और झारखण्ड में
लिखी जा रही है
एक और ही गाथा
रात की स्याही को
घोल कर
अपने आँसुओं में
आँसुओं की स्याही को
घोल कर बारूद में
लोहे से
दर्ज कर रहे हैं लोग
अपना-अपना बयान
बुन रहे हैं
अपने संकल्प और सितम से
उस दुनिया के सपने
जहाँ शब्दों
और ज़िन्दगी की
सरहदें
एक-दूसरे में
घुल जाएँगी