वहाँ सु गुज़रते हुए
देखा है बच्चों को सड़क पर खेलते हुए
कितनी बार खीझ कर उनकी माँओं से कहा है-ऐ बच्चे को साइड करो
एक्सिडेन्ट हो जाएगा
लौट कर रातों को
सपनों में अकसर चौंक जाता हूँ
डरता हूँ कहीं बच्चे को कुछ हो न गया हो
मेरी घड़ी की सुई दुःखों के चक्र में घूमती है
इन दिनों तेज़ी से दौड़ रही है सुई
पता नहीं चलता हत्याओं बलात्कारों के बीच
कुछ और भी बचा या नहीं
मैं मन्टो और घटक की तरह
खु़द को जला नहीं पाता
इसलिए बनता ही रहता हूँ
बार बार नंगी औरत सड़क बीच
बार बार सरहदों को फाड़ता
मैं चीख़ नहीं पाता रो नहीं पाता
जिसको ख़त लिखता हूँ, उसके पढ़ने के पहले पहुँचा हुआ ख़त खुद
दुबारा पढ़ लेता हूँ
न ख़त को पता है, न उसको कि ख़त दुबारा पढ़ा जा रहा है
दुबारा पढ़ते हुए लिख रहा हूँ जहाँ सुई खड़ी है
मेरे चारों ओर है शोर छोटे बड़े इनक़लाबों का
मैं ख़त पढ़ रहा हूँ ख़त लिख रहा हूँ।