जब तुम्हारे और मेरे
ऊपर की रेखा
हो चुके एक
और उपजाए कोई अर्थ
शुरु हो जाए एक लय
अनुगूंज ब
बाहर-भीतर
जगाए भीतर को
रचाए बाहर को
झारे एक शब्द-श्रृंखला
वही तो है कविता
जब तुम्हारे और मेरे
ऊपर की रेखा
हो चुके एक
और उपजाए कोई अर्थ
शुरु हो जाए एक लय
अनुगूंज ब
बाहर-भीतर
जगाए भीतर को
रचाए बाहर को
झारे एक शब्द-श्रृंखला
वही तो है कविता