वह जनसभा न थी राष्ट्रीय दिवस था
एक बड़े राष्ट्र का
कितने आरामदेह होते हैं अन्य बड़े राष्ट्रों के
राष्ट्रदिवस दिल्ली में
एक मंत्री भीड़ के बीच खोया सा सहसा मिल गया मुझे
देखते ही बोला-- अच्छे हो!
मैंने कहा-- हुज़ूर ने पहचाना!
तब कहने लगा जैसे यही पहचान हो
तुम अभी संकट से मुक्त नहीं हुए हो
फिर जैसे शक हो गया हो कि भूल की--
क्षण भर घूरा मुझे
बोला-- कल मेरे पास आना तब बाक़ी बताऊँगा
जाने कौन व्यक्ति था जिसको इसने मुझे समझा