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वह चला गया चुपचाप / रामदरश मिश्र

(पुत्र हेमंत की याद में)

वह चला गया चुपचाप

वह चुपचाप चला गया
किसी को नहीं बताया
यहाँ छूट गया है उसका साया
साया चुप है
लेकिन उसमें अंकित हैं कितनी ही लिपियाँ
जिनमें से झाँकते रहते हैं चेहरे-
राग के, विराग के
पानी के, आग के
हँसी के, आँसू के
फूलों के, काँटों के
यहाँ के, वहाँ के
कल के, परसों के
जिनके साथ मेरी भी यात्राएँ होती रही हैं
दरअसल इन सारे चेहरों में
उसी का तो चेहरा दीप्त होता लगता है
और मुझे प्रतीत होता है
कि वह गया नहीं है
यहीं कहीं है
जिसे जब चाहे
आवाज़ देकर बुला लूँगा।
-6.10.2016