इन दिनों मेरे देश में
गली-गली पहचान-परेड चल रही है
हर पहला आदमी
दूसरे आदमी को कम देशभक्त कह रहा है
और दूसरा आदमी अपने खेमे में
पहले को अधिक देशद्रोही घोषित कर चुका है
इन दोनों से दूर नुक्कड़ पर खड़ा तीसरा,चौथा,पाँचवाँ
जो व्यक्ति मौजुद है
वह जानता है
अगर बोलेगा
तो धुरविरोधी/धुर समर्थक कहा जायेगा
इसलिए उसे चुप रहना ही श्रेयस्कर लगता है
उसकी चुप्पी को गद्दारी,कायरता और मौकापरस्ती भी कहा जाता है
लेक़िन वह चुप है!
वह चुप है
ताकि वह स्वयं को ढाढ़स बंधा सके कि
वह अभी भी इस अर्थ में
अपने देश का एक आम नागरिक है
जिसे कुछ लोग शक्ल,नाम और पते से पहचानते हैं
और जानते हैं समझते भी हैं कि
अनेक मौक़ों पर
देश-प्रेम का मतलब;
गरिमामयी चुप्पी भी हो सकती है
कंठ में उबलती घुटन भी हो सकती है
बाजुओं की फड़कती नसें भी हो सकती है
आँखों के नमक को गटक जाना भी हो सकता है
इसलिए वह चुप ही है और
उसके इर्दगिर्द पहचान-परेड चालू है।