वह दिन न दिखाना प्रभु
जब बर्फ़ में लगे गले सिपाही
और मैं
लिहाफ में दुबका टी.वी. निहारता
लिखूं करगिल पर कविता।
वह दिन भी न दिखाना
जब शिकायत का घण्टा बजा
बैठा रहूं बाहर घण्टों
और खबर न करे भीतर सुस्ताते राजा को
शातिर दरबान।
वह दिन भी न दिखाना
जब हत्या कर दी जाए सरेआम
मासूम मजदूर बच्चे की
या देश के प्रधानमंत्री की
और हत्यारे पकड़े न जाएं बरसों।
न दिखाना कत्लेआम
दोहराना न सेंतालीस बार-बार
हिन्हू न दिखाना
मुसलमां न दिखाना
सिक्ख न दिखाना ईसाई न दिखाना
आपस में लड़ें ऐसे भाई भाई न दिखाना।
उद्घाटन के बाद टूटते पुल न दिखाना
पेयजल योजना के सूखे नल न दिखाना।
न दिखाना रेत के भवन
लैम्प की तरह जलते बल्ब न दिखाना
न दिखाना सूखे में बंटता राशन
बाढ़ में उड़ता जहाज न दिखाना।
न दिखाना रोते हुये नेता
हंसते हुये अफसर न दिखाना
दिखाना लंगोटी में नंगा गांधी
होली खेलता क्लिंक्टन बिल न दिखाना
दिखाना परशुराम, समर्थ अर्जुन, पृथ्वीराज चौहान
चाहो तो दिखाना विभीषण, कर्ण, अश्वत्थामा
चंगेज और जयचंद न दिखाना।
न दिखाना कांपती धरती
डूबता सूरज न दिखाना
न दिखाना नंगा पहाड़
ढंका समन्दर न दिखाना।
अपना मुल्क दिखाना
दिखाना अपने घरबार
अपने लोग
दिखाना खेलते बच्चे
खिलते फूल
दिखाना लोहड़ी का त्यौहार
फसले बहार
आंगन में धान कूटती औरतें दिखाना
पनघट में अंजुलियों से
पानी पीते दिखाना थके राहगीर
खिलखिलाती पनिहारने दिखाना।
न दिखाना मिनरल वाटर
न दिखाना विज्ञापन के बच्चे
न दिखाना ओल्डहोम के बूढ़े
मेरे बच्चे के साथ बंदरी न दिखाना
विदेशी पोशाक में विश्व सुंदरी न दिखाना।
हे प्रभु!
दिखाना मुझे पीली सरसों और पतंग
लोकनाच की नई उमंग
दिखाना न कभी हेल्थ या हंसी के क्लब
रोने की कोई सूरत न दिखाना।
दिखाना बच्चों की तरह बड़े
पल में झगड़ते पल में मनते
बड़े हुये भी छोटे लगते
छोटे हुये भी बड़े लगते।
हे प्रभु!
मुझे क्या क्या दिखाना, यह मर्जी है तुम्हारी
न दिखाना, यह भी फितरत है तुम्हारी
वह दिखाना, जो न सब को दिखाया
जो सब को दिखाया, न कवि को दिखाना।