वह पागल है। मैं उस का निरन्तर प्रयास देख कर उसे समझाता हूँ, 'पागल! ओ पागल! तू इस टूटे हुए कलश में पानी क्यों भरता है? इस का क्या फल होगा? यह पानी बह कर लाभहीन अनुभव की रेत में सूख जाएगा, और तू प्यासा खड़ा देखता रहेगा।'
किन्तु वह मानो अलौकिक ज्ञान पाकर बड़ी दृढ़ निष्ठा से कहता है : 'जहाँ जल गिरता है, वहाँ जीवन प्रकट होता है। दु:ख ही में सुख का अंकुर है।'
वह पागल है! असाध पागल है!
दिल्ली जेल, 15 नवम्बर, 1932