चेहरा लगाए है
गुरिल्ला का
सुबह आने के लिए
दिन का दायित्व
निभाने के लिए
धूप जो मर गई है
फिर भी है
उसको जिलाने के लिए
रचनाकाल: ३०-०४-१९६८
चेहरा लगाए है
गुरिल्ला का
सुबह आने के लिए
दिन का दायित्व
निभाने के लिए
धूप जो मर गई है
फिर भी है
उसको जिलाने के लिए
रचनाकाल: ३०-०४-१९६८