उम्र भर
संग चलने के वादे
कितनी जल्दी थक जाते हैं
दो चार कदम चलते
रुक जाते हैं
ज़िन्दगी की राह
इतनी उबड़-खाबड़ है कि
वादों के नन्हें-नन्हें पांव
डग नहीं भर पाते
कोई भी मोड़
बहाने की तरह
खड़ा मिल जाता है इनको
और
वादे– बहाने की उंगली थाम कर
जाने कहाँ चले जाते हैं।