Last modified on 9 मई 2011, at 12:48

वापसी / नरेश अग्रवाल

कई दिनों की थकान छोडक़र
वह वापस ताजगी में लौट आया है
जैसे पतझड़ के बाद लौट आते हैं पत्ते
या सीलन भरी बरसात के बाद जाड़े
और वह प्रफुल्लित लग रहा है कितना
जैसे सुबह का फूल खिला हो अभी-अभी।
काम-काज, सब में गति है
जैसे हवा से पंखुडिय़ां हिल रही हों ।
मेंहदी का रंग जैसे चढ़ जाता है हाथों में
वैसा ही अनुभव पा लिया था उसने
कलम को पकड़ता है वो अब अच्छी तरह से
और चूक नहीं करता सामानों को गिनने में
ना ही देर लगाता है काम से वापस लौटने में
कितना बदल गया है वह
बदल गयी है उसकी सारी थकान, ताजगी में।