एक सुनसान दुपहरी में
जब हवा के हाथ भी तंग थे
और पेड़ धूप की आँच से जले जा रहे थे
गंगा-जमुना के संगम पर
अपनी उपेक्षा और दुर्दशा से तंग आकर
सारी नदियों ने महाकुंभ लगाकर
एक प्रस्ताव रखा कि
अब हमें लौट जाना चाहिए अपने घर और
छोड़ देनी चाहिए सारी ज़मीन
'पक्के विकास' के वास्ते ।
ख़ाली कर देनी चाहिए सारी धरती
खेतों का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए
कचरा-मलबा बहाने के लिए
गाड़ी-मोटर चलाने के लिए
रेत का बवंडर उड़ाने के लिए।
यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर
एक दिन सारी नदियाँ
दुःखी मन से वापस चल दीं।