वामन हैं विभु प्रकृति नियम के नियमनकारी।
भव विभुता आधार भुवन प्रभुता अधिकारी।
व्यापक विविध विधान विश्व के सविधि विधायक।
लोकनीति परलोक प्रथा के प्रगति प्रदायक।
जग अभिनय अति कमनीय के वर अभिनेता मोद हद।
अवतार रूप में अवनि के भार निवारक मुक्तिप्रद।1।
बलि है बहु बलवान लोक विजयी दनुजाधिप।
धीर वीर साहसी विवुधा सेवित वसुधाधिप।
हो उदार अनुदार नीति अवलम्बन कारी।
कुछ उध्दत अधिकार प्रेम प्रेमिक अविचारी।
मानव मानवता दमनरत सुरसमूह दृग प्रबलतम।
मंगलमय, मंगल कामना कमनीयता कलंक सम।2।
यह सारा संसार बाग है परम मनोहर।
दनुज मनुज सुरवृन्द आदि हैं सुन्दर तरुवर।
ललित कलित वर वेलिलोक की ललनाएँ है।
बालक हैं कल कुसुम बालिका लतिकाएँ हैं।
खग ही हैं कलरव निरत खग पालित पशु हैं पशु सकल।
तृण वीरुधा बहुविधा जीव हैं विधिा विधान हैं विविध फल।3।
परि पालक यदि सरुचि बाग परिपालन रत हो।
सानुकूल रह सहज समुन्नति निरत सतत हो।
करे सकल मल दूर म्लानता उसकी खोवे।
बर अवसर अवलोक बीज हित साधन बोवे।
कर काट छाँट समुचित उसे करे सदा कंटक रहित।
तो होगी कृति कमनीयता मिलित परम प्रभु रुचि सहित।4।
किन्तु यदि न वह दया वारि से उसको सींचे।
कृमि संकुल विदलित विलोक नयनों को मींचे।
अथवा पादप पुंज समुन्मूलन रत होवे।
लता वेलि कोदले कुसुम चय उपचय खोवे।
तो किसी जगतहित साधिका दिव्य शक्ति से विवश बन।
निज नितपन गति अनुसार ही होवेगा उसका पतन।5।
दिव्य शक्ति की दिव्य मूर्ति हैं वामन विभु वर।
परिपालक है पतन प्राय बलि बैरी सुर नर।
वह उदार है, परम मलिन है नीति न उसकी।
परि पालन की विपुल बुरी है रीति न उसकी।
वह परम भक्त प्रधाद का है अति प्यारा वंश धार।
इस से निग्रह की क्रिया में है न अनुग्रह की कसर।6।
छल प्रपंच जिसके जीवन का संबल होवे।
क्यों सँभले सर्वस्व जो न वह छल से खोवे।
जो सबको लघु गिने, साम्य क्यों करे प्रचारित।
जो न आवरित करे उसे लघुता विस्तारित।
जग जैसे को तैसा मिला तुच्छ नहीं है अग्नि कण।
वामन वामनता विशदता का यह है विशदीकरण।7।
रुचिर नीति है यही रुधिर का पात न होवे।
जहाँ शान्ति रह सके वहाँ उत्पात न होवे।
भौंह तने जो भीत बने असि उसे न मारे।
लघु अपराधी उदर करद द्वार न बिदारे।
है क्रिया नीति की सहचरी जननी शान्ति महान की।
वामन के दान ग्रहण तथा बलि के दान प्रदान की।8।
लोक हितकारी क्रिया सके अवलोक नहीं सित।
इसीलिए लोचन विहीन हो बने कलंकित।
प्रतिपालन कर वचन न पाया बलि ने निज तन।
वामन ने प्रतिफल जन किया द्वारपाल बन।
यह देख युगल यश जलज का सकल लोकमन अलि हुआ।
बलि पर बामन वलि हो गये वामन पर बलि बलि हुआ।9।
जगजन रंजन रुचिर नीति से हो बहु वंचित।
कर त्रिभुवन भी दान हुआ बलि परम प्रवंचित।
हो त्रिलोक पति धीर बीर विजयी उदार चित।
अधा: पतित वह हुआ हुए पाताल प्रवासित।
वर्धान कर त्रिभुवन शान्ति सुख समधिक सम्वर्धित हुए।
हो वामन बँधा विधिा सूत्रा में वामन बहु वधिर्त हुए।10।