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वार्ता:पंचवटी / मैथिलीशरण गुप्त / पृष्ठ १

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"जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर वीर निर्भीकमना" इसमें "निर्भीकमना" गलत है इसको "निर्भीक बना" होना चाहिए |

मुझे ये पंक्तिया कंठस्थ है और इन पंक्तियों से प्रेम भी है इसलिए ये विनम्र सुझाव लिख रहा हूँ| मुझे ये पन्ना ठीक करने का भी अधिकार नहीं, अन्यथा मैं स्वयं ये भर उठा लेता |


Dixitsandeep

ये पंक्तियाँ मैंने मूल पुस्तक से टाइप और जाँच करके सुरक्षित की हैं। कई बार पाठ्य पुस्तकों में गलत छाप दिया जाता है। "निर्भीकमना" शब्द सही है और कविता में ज्यादा उचित भी है। आशा है आप की समस्या का समाधान हो गया होगा।


धर्मेन्द्र कुमार सिंह