Last modified on 11 जनवरी 2010, at 17:25

वार्ता:Sharda monga

Return to "Sharda monga" page.

कौन तुम!

मेरे संगीत कुञ्ज में तार सी मृदु झंकार,

निशब्द बन कर अमृत रस छलकाती हो,

मेरे हृदय पटल पर, सुंदर चित्र सी बन,

स्वर्गिक आनंद बरसा, स्वप्न पुष्प खिलाती हो.

कौन तुम! अप्सरा सी! चाह का छलावा दे,

मेरे कोमल द्रवित मन में, मधुर व्यथा भर जाती हो.

कौन तुम!

कविता कोश में अपनी रचनाएँ जोड़ना

शारदा मोंगा जी,

कविता कोश में जिस तरह आप अपनी रचनाएँ जोड़ने की कोशिश कर रही हैं वह सही तरीका नहीं है। इस तरह आपका सारा श्रम बेकार जा रहा है और कोश पर आने वाले पाठक आपकी रचनाओं तक नहीं पहुँच पाएंगे। यदि आप चाह्ती हैं कि कविता कोश में आपकी रचनाओं के संकलन पर विचार हो तो आपको इसके लिये आवेदन करना होगा। आवेदन से संबंधित जानकारी के लिये देखें: नये नाम जोड़ने की प्रक्रिया

कोई प्रश्न मन में हो तो kavitakosh@gmail.com पर ईमेल भेजें।

सादर

--सम्यक 11:55, 11 जनवरी 2010 (UTC)