वास्तुकार हैं धरा के
इस ग्रह के सज्जाकार हैं,
हम हैं चमत्कारों के रचयिता।
सूर्य-रश्मियों को बाँधकर
हम तैयार करेंगे दीप्तिमान झाड़ू
और आकाश से बादलों की सफ़ाई करेंगे
बिजली से।
हम दुनिया की सारी नदियों को शहद-सा मीठा बना देंगे
धरती की सड़कों पर चमकते तारों का खड़ंजा बिछा देंगे।
आज इन दरवाज़ों के पीछे भरे पड़े हैं
नाटक के साजो-सामान
कल इस कूड़ा-करकट
कि जगह लेंगी ठोस वास्तविकताएँ।
हम इसे जानते हैं बख़ूबी
हमारा यक़ीन है इस बात में
और अब यह ख़बर
हम तुम्हें दे रहे हैं।
आओ, सभागार से बाहर
हमारे निकट आओ!
सबके सब इधर आओ!
अभिनेता, कवि, निर्देशक,
सभी इधर आओ!