मैं आप में से कोई हूँ
बस थोड़ा अलग।
बहरा, अंधरा,
काना, लूला, बतहा,
नहीं-नहीं,
यह सब नहीं हूँ मैं
यह सब संबोधन
नहीं चाहिए मुझे
ऐसी भावना भी नहीं
ऐसा व्यवहार भी नहीं
दयाभाव भी नहीं
घृणाभाव भी नहीं
दुत्कार फटकार,
नहीं नहीं।
सुविधा और अवसर चाहिए मुझे
मैं भी बन सकता हूँ
सूरदास, मिलटन
अल्बर्ट आइंस्टीन, स्टीफन हॉकिंग
रविंद्र जैन, सुधा चंद्रन
हेलेन केलर, ललित कुमार
रोजर बिन्नी और दिलीप दोषी।
कोई भी घटना कर दे सकता है
किसी भी व्यक्ति के
किसी अंग की स्थायी क्षति
फिर उससे घृणा क्यों?
उसकी उपेक्षा क्यों?
व्यक्ति विकलांग नहीं होते
मानसिकता विकलांग होती है
इसलिए आपको
बदलनी चाहिए अपनी सोच
फिर मेरी अक्षमता भी
सक्षमता में बदल जाएगी।