विकल म्लान मन,
द्वन्द्वों में संलग्न बना निश्चेतन।
अन्तर्यामी अमृत तुम्हारे भीतर,
निर्मल चिदानन्दमय रस भर,
करता भुवन-भुवन में तम का नियमन।
पराशक्ति के प्रणवतार से गुम्फित,
आत्ममूल जो विकृति रहित नूतन नित,
बना ललाम किया तब उसने प्रजनन।
उठा कलुषतम के विषाद से आवृत,
मर्त्यभाव के अटल अंक में केन्द्रित
दुख-संशय के तन्तुजाल का गंुठन।