विकसित आनन्द का विषय पाइ,
दर्शन का चित्त विकसै,
विषय में (आ) सक्ति भी भेद नहीं,
आनन्द सुख का अंकुर (है),
(परन्तु) भवपंक में आसक्ति शूकर जिमि।
पंडित राहुल सांकृत्यायन द्वारा अनूदित
विकसित आनन्द का विषय पाइ,
दर्शन का चित्त विकसै,
विषय में (आ) सक्ति भी भेद नहीं,
आनन्द सुख का अंकुर (है),
(परन्तु) भवपंक में आसक्ति शूकर जिमि।
पंडित राहुल सांकृत्यायन द्वारा अनूदित