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विक्षेप / महेन्द्र भटनागर

मन के राज्य में
देखे स्वप्न जो रंगीन,
मांसल कल्पनाओं में रहे जो लीन,
मिथ्या वासना अतिचार —
समझा किये
सुख-स्वर्ग का संसार।
पृथ्वी का महत् वरदान,
सम्भव कामनाओं का
चरम सोपान।

जन्म सार्थकता —
सतत उपभोग-मादकता।
अमित रस-सृष्टि —
जीवन-दृष्टि।

किन्तु
जगत् यथार्थ

कितना भिन्न !

सपनों में रचाया लोक
रेशम-सी नरम चिकनी
बुनावट कल्पनाओं की

तनिक में छिन्न !

कोई
भाग्यशाली
शक्तिशाली
कुछ क्षणों को
कर सका साकार
औचट
या कि कर अपहार !
औरों के लिए
केवल
विसंगति
आत्म-रति।