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विजये! / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

विजये! विजय शंख हम फूकी॥
रगड़ि रगड़ि तरहत्थी पर दै-
फाँकी मस्त भै झूकी।
पकड़ि पकड़ि पाथर केर टुकरी
चुटकी पर दै बूकी॥
पंचम तान ज्ञान बिनु रहितहूँ
मस्त फागु निम कूकी।
रसगुल्ला लड्डू खैबा मे
ककरो लग नहि चूकी।
विजये। विजय शँख हम फूकी॥
बिनु विजयेँ बोआइत बहुतो
व्यक्तिक हाल कहू की।
रहै मरीच कनेंको मिसरी
बुझी चारि की? दू की?॥
विजये! विजय शंख हम फकी॥
घोंटि घाँटि लोटा भरि देने
शत्रुक गर्दनि मोंकी।
सेवक भग्ड़-भावानीक भै हम
खोआ बर्फी झोंकी॥
विजये! विजय शंख हम फूकी॥