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विजयोल्लास / महेन्द्र भटनागर

हमने चाहा

जी लें जब-तक आये
नयी शती !
हमने चाहा
धड़कन बंद न हो
जब-तक आये
हँसती-गाती
नयी शती !
पूरी होती
इस इच्छा पर
कौतूहल है,
मानव-आस्था में
सच;
कितना बल है !
अद्भुत बल है !
हमने चाहा
जी लें जब-तक आये
नयी शती !
आख़िर आ ही गयी
थिरकती नयी शती ।
सचमुच
आ ही गयी
ठुमकती नयी शती !
मृत्यु पराजित
जीवन जीत गया !
सफल तपस्या,
पहनूंगा अब
सुविधा से परिधान नया !