तुमने कहा उठो
मैं उठ गई
बैठने को कहा बैठ गई
यही होता रहा हर बार।
आज फुरसत में सोचती हूँ
इतने वर्ष कैसे जीये मैंने
मैं, मानो मैं न थी।
हवा के रुख से झूलती टहनी
कब विपरीत दिशा में लहरा पाती है?
चाहे भी वह
तो बाँध देता है माली उसे
लकड़ी की जड़ खपच्ची से
और
जड़ खपच्ची
करती है निर्धारित
पौधे के झूमने की दिशा।