कातिक के ऐथैं
आबेॅ लौटलोॅ जाय भादो के मेघ
सब्भे सुहागिन के खोंचा में
भरी केॅ अहिवात।
सब्भे किशोरी के हाथोॅ में
सुपती आरो मौनी भर सपना केॅ सौंपी
लौटै छै बरसा सुहागिन।
भरलोॅ छै नद्दी आ पोखर
खेतोॅ मेॅ जागै छै सपना
अभियो छै धरती के गल्ला में
वीरबहूटी के गिरमल हार
अभियो छै जंगल में बिछलोॅ
नील पत्ता रोॅ बिछावन
केकरोॅ लेॅ?
आबेॅ लेॅ लौटी रहलोॅ छै
बरखा रानी
अपनोॅ नैहर।
चैत आवै सेॅ पहिले।