Last modified on 14 मई 2014, at 13:10

विदाई का गीत / अज्ञेय

यह जाने का छिन आया
पर कोई उदास गीत
अभी गाना ना।
चाहना जो चाहना

पर उलाहना मन में ओ मीत!
कभी लाना ना!
वह दूर, दूर सुनो, कहीं लहर
लाती है और भी दूर, दूर, दूरतर का स्वर,

उसमें हाँ, मोह नहीं,
पर कहीं विछोह नहीं,
वह गुरुतर सच युगातीत
रे भुलाना ना!

नहीं भोर-संझा उमगते-निमगते
सूरज, चाँद, तारे, नहीं वहाँ
उझकते-झिझकते डगमग किनारे;
वहाँ एक अन्तःस्थ आलोक

अविराम रहता पुकारे;
यही ज्योति-कवच है हमारा निजी सच,
सार जो हम ने पाया गढ़ा, चमकाया, लुटाया:
उस की सुप्रीत छाया से बाहर, ओ मीत,
अब जाना ना!

कोई उदास गीत, ओ मीत!
अभी गाना ना!