वह विदा हो रहा था
विदा करते हुए उसके हाथ को उठना था
इस बार यन्त्रवत नहीं
हाथ को हाथ की तरह उठना था
बहुत आहिस्ते से उसके बोध ने प्रवेश किया
हरकत में हाथ आहिस्ते से उठता था
उसकी आँख से प्रेम बरसकर गिरता था
वही प्रेम बहता हुआ हाथ में शिखर-सा उठता था
हाथ पूरा उठा हुआ विदा में हिलता था
हिलते हुए हाथ में बोध प्रवाहित होता था !