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विदेशिनी-2 / कुमार अनुपम

वहाँ
तुम्हारा माथा तप रहा है
बुखार में

मैं बस आँसू में
भीगी कुछ पंक्तियाँ भेजता हूँ यहाँ से
इन्हें माथे पर धरना... ।