विद्याधर<ref>वह व्यक्ति जिसने जयपुर शहर का नक्शा बनाया था।</ref>
तुमने बनाया सुन्दर रक्तवर्णी शहर
आग का फूल
बुधपुरा<ref>जयपुर के निकट का वह स्थान जहाँ पत्थरों की खानें हैं</ref> के पत्थरों को दिया नया जीवन
लाख-घर में बदलते चले गए रफ्ता-रफ्ता
लाल पत्थरों के घर
तुम गोदते रहे मकराणा<ref>संगमरमर</ref>
छुपाते रहे रियासत का सोना
मकराणा के शरीर में
चन्द लोगों ने चढ़ा लिया है अपने दाँतों पर
तुम्हारे राजा का सोना
खत्म हो गई है बाड़सोत<ref>देहरी</ref> की ताकत
तुमने तो बन्द किया था पूरा शहर
हैं।
दरवाजों के अन्दर
बड़ी चौपड़ की भागमभाग में
कोई नहीं करता याद तुमको
भयभीत है तुम्हारा तोपखाना देश*
विद्याधर।
शब्दार्थ
<references/>