आवत जात प्रवाह सदा, धन जोरि बटोरि धरो न कबाहीं।
तू महराज गरीब नेवाज, अकाज सुकाज को लाज तुमही॥
जो हृदये हरि को पदपंकज सो मति मो मनते विसराही।
कहे धरनी मनसा वच कर्मन, मोहि परो अवलम्बन नाही॥18॥
आवत जात प्रवाह सदा, धन जोरि बटोरि धरो न कबाहीं।
तू महराज गरीब नेवाज, अकाज सुकाज को लाज तुमही॥
जो हृदये हरि को पदपंकज सो मति मो मनते विसराही।
कहे धरनी मनसा वच कर्मन, मोहि परो अवलम्बन नाही॥18॥