धनि-धनि नाम तेरो धरनि चरन चेरो, कछु अपराध मेरो मनमँ न आनिये।
तुम प्रभु महाराज हाँ तो निपटै निकाज, करिबेकि कीजै लाज दूसरी न ठानिये॥
तप ना तिरथ जाप जाहिते कटैगो पाप, पूरन प्रताप राम रावरो बखानिये।
दास को उदास कीजे मेरो कछु नाहि छीजै, आपुही समुझि लीजै अपने को जानिये॥8