अब इसका निर्णय
कौन लेगा
कि तुम सही हो
या गलत
इस विभ्रम की स्थिति में
जब तुम ही प्रेक्षक हो
इस कालचक्र के
जहाँ वक़्त जकड़ा हुआ है
तुम्हारे ही तर्कों में
उस एक वक़्त में जब
तुम्हारा ही एक तर्क
तुम्हें सही साबित करता है
और दूसरा गलत
जब तुम स्तब्ध होते हो
होते हो आशंकित
विवर्तों में घिरे
और
इस निर्लिप्त
संवादहीनता की स्थिति में
जब तर्कों की लड़ाई जारी है
एक संयमित स्पष्ट मौन ही
तुमसे अपेक्षित है
क्योंकि इसके आगे भी
हर परिणाम में तुम ही होगे
जीत में भी तुम
हार में भी तुम...