गांव के मर्द
खाने-कमाने निकल गए हैं
कोलकता, मुंबई, चेत्रई, गौहाटी
अरब, दुबई, कतर, ओमान
रेगिस्तानी सिन्धी सांरगी
बजा रही है
विरह का स्थायी भाव
नये बने पक्के मकान में गूंजती
गांव की औरतों की
आधी रात की सिसकियों में
डूब जाती है
सिक्कों की खनक
छा जाती है
सांरगी की गूंज