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विरुद्ध / अशोक शुभदर्शी

हम्में देखलियै ओकरा
खाड़ोॅ
सभ्भै चीजोॅ केॅ विरुद्ध
ऊ देखै लेॅ हमरा
खाड़ोॅ छेलै
आदमी केॅ विरुद्ध
तबेॅ हम्में लिखलियै एगोॅ कविता
ओकरोॅ विरुद्ध
आरोॅ सुनैलियै ओकरै
सभ्भै सें पैहनेॅ
ऊ कविता

आबेॅ ऊ खाड़ोॅ छै
कविता केॅ विरुद्ध ।