भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
हामु तातला रूटा खासुँ रे गुपाल्या मुजिलाल।
याहिणि सुकला टुकड़ा खासे रे गुपाल्या मुजिलाल।
हामु लाड़ि लीजासूं रे गुपाल्या मुजिलाल।
हामु ताबलो पाणि पीसुँ रे गुपाल्या मुजिलाल।
याहिणि वासी पाणी पीसे रे, गुपाल्या मुजिलाल।
हामु तातला रूटा खासुं रे, गुपाल्या मुजिलाल।
- वर पक्ष की महिलाएँ गा रही हैं कि हम गरम रोटी खाएँगे। समधन सूखे टुकड़े खाएगी क्योंकि हम दुल्हन को ले जायंेगे। हम ताजा पानी पीयेंगी और समधन बासा पानी पीयेगी।