भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
सोनार्यो कांटो मारा नाक मा रे।
चूड़िलो चमके मारा हात मा रे।
चांदी ना झेला मारा मंुड मा रे।
चूड़िलो चमके मारा हात मा रे।
चांदी नो हार मारा गला मा रे।
चूड़िलो चमके मारा हात मा रे।
चांदी ना विछा मारा पाय मा रे।
चूड़िलो चमके मारा हात मा रे।
चांदी ना हाटका मारा हात मा रे।
चूड़िलो चमके मारा हात मा रे।
- हे सखी! मेरी नाक में सोने का काँटा, हाथ में चूड़ा चमक रहा है। मेरे सिर पर चाँदी का झेला, गले में हार, पाँव में बिछिया और हाथ में हटका सुशोभित है। इन सभी में हाथ का चूड़ा खूब चमक रहा है।