है यदि तेरा हृदय विशाल, विराट् प्रणय का इच्छुक क्यों? है यदि प्रणय अतल, तो अपनी अतल-पूर्ति का भिक्षुक क्यों? दावानल की काल-ज्वाल जलती-बुझती एकाकी ही- जीवन हो यदि ऊँचा तो ऊँची समाधि हो रक्षक क्यों? मुलतान जेल, 5 दिसम्बर, 1933