सघन वन
स्मृतियों का
और मुझ से अपेक्षित सहजता
केंद्र से आरम्भ
दो विपरीत दिशाओं की
त्रिज्याओं-सी हैं
मेरे जीवन वृत्त की।
इस परिधि का
इतना विस्तार भी नहीं
समेट पाए
सारा, सबकुछ
क्या जोड़ने दोगे
अपना भी कुछ?
हर्ष नहीं तो
विषाद ही सही
सहमति नहीं तो
विवाद ही सही
ऐसा करने से
त्रिज्या लधु नहीं रहेगी
और विशाल वृत
तुम्हारा भी हो रहेगा