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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रकान्त देवताले |संग्रह=लकड़बग्घा हँस रहा…
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|रचनाकार=चन्द्रकान्त देवताले
|संग्रह=लकड़बग्घा हँस रहा है / चन्द्रकान्त देवताले
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<poem>
वह शीशम के सबसे सुन्दर फूल की तरह
मेरी आँख के भीतर खुप रही थी
अपने बालों में पीले फूलों को खोंसकर
वह शब्दों के लिए ग़ैरहाजिर
पर आँखों के लिए मौज़ूद थी

मैं बोलता जा रहा था
पर शब्द जहाँ से आ रहे थे
वहाँ एक दूसरी ही लड़की एक नदी थी

और यह सामने बैठी हुई लड़की
उस नदी से लेकर
एक बैंजनी फूल मुझे दे रही थी
और यह फूल
एक तीसरी ही लड़की का नाम था

और यह सब करते हुए वह
एक-दो-तीन नहीं
हज़ारों दिनों को तहस-नहस कर रही थी
</poem>