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ख़ुद को रचता गया / नारायण सुर्वे
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16:14, 9 दिसम्बर 2010
झुण्ड बनाकर ब्रह्माण्ड में रंभाता घूमा नहीं
ख़ुद को ही
रवता
रचता
गया, यह आदत कभी गई
नहीं।
नहीं ।
</poem>
अनिल जनविजय
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