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मेरी प्रिय कविता / नामदेव ढसाल

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इसके अलावा और भी मनुष्यों जैसा कुछ-कुछ
शून्य भाव से आकाश तले घूमना मुझे ठीक नहीं लगता,
 
बादलों के सुंदर आकार आकाश में सरकते आगे आते-जाते हुए
देखने से भर जाता है मेरा अंतरंग ।
मैं तरोताज़ा हो जाता हूँ, सम्भालता हूँ, समकालीन जीवन की
सामाजिकता को ।
धमनियों से बहता रक्त का ज़बरदस्त रेला,
तेज़ी से फड़फड़ाने वाली धमनी पर उँगली रखना मुझे अच्छा
लगता है ।
 
जिस रोटी ने मुझे निरंतर सताया,
वह रोटी नहीं कर पाई मुझे पराजित,
मैंने पैदा की है जीवन की आस्था
और लिखे हैं मैंने जीने के शुद्ध-अभंग
मनुष्य क्षण भर को अपना दुख भूले-बिसार दे
कविता की ऐसी पंक्ति लिखने की कोशिश की मैंने हमेशा,
भौतिकता की उँगली पकड़कर मैं चैतन्य के यहाँ गया,
परन्तु वहाँ रमना संभव नहीं था मेरे लिए, उसकी उँगली पकड़
मैं फिर से भौतिकता की ओर ही आया,
अस्तित्त्व-अनस्तित्त्व के बीच स्थित
बाह्य रेखाओं का अनुभव मैंने किया है,
मैंने अनुभव किया है साक्षात ब्रह्माण्ड
कविता मेरी, बताओ
इससे अधिक क्या हो सकता है
किसी कवि का चरित्र ?
 
हे मेरी प्रिय कविता
नहीं बसाना है मुझे अलग से कोई द्वीप,
तू चलती रह, आम से आम आदमी की उँगली पकड़
मेरी प्रिय कविते,
जहाँ से मैंने यात्रा शुरू की थी
फिर से वहीं आकर रुकना मुझे नहीं पसंद,
मैं लाँघना चाहता हूँ
अपना पुराना क्षितिज ।
</poem>
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