गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
ख़ुद को रचता गया / नारायण सुर्वे
114 bytes added
,
18:08, 9 दिसम्बर 2010
झुण्ड बनाकर ब्रह्माण्ड में रंभाता घूमा नहीं
ख़ुद को ही रचता गया, यह आदत कभी गई नहीं ।
'''मूल मराठी से अनुवाद : सूर्यनारायण रणसुभे'''
</poem>
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits