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जीने की अदा जाने / इस्मत ज़ैदी
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05:27, 10 दिसम्बर 2010
<poem>
है दुनिया की कुछ परवा ,न कुछ अच्छा बुरा जाने
कोई समझे क़लंदर
<ref>फ़क़ीर</ref>
उस को और कोई गदा
<ref>भिखारी, भिक्षुक</ref>
जाने
मदद से असलहों
<ref>हथियार</ref>
की जो दुकां अपनी चलाता है
मुहब्बत, दोस्ती, एहसास, जज़्बा, फ़िक्र क्या जाने?
अनिल जनविजय
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