[[Category:ग़ज़ल]]
सर ये ही अब फोड़िए नदामत मेंनीन्द आने लगी है फुरसत फुरकत में
वो खला है कि सोचता हूँ मैं
उससे क्या गुफ्तगू हो खलबत में
मेरे कमरे का क्या बया कि यहाँजहाँकौन खून थूका गया शरारत में
रूह ने इश्क का फरेब दिया
रूठते अब भी है मुर्रबत में
तो वो जो तामीर होने वाली थी
लग गई आग उस इमारत में