<poem>'''नई शताब्दीईश्वरी सत्ता पर शोध पत्र'''
एक बार फिर पैदा हुआ हिन्दू जाति मेंकिसी आकाशीय पिंड के हृदय हिन्दुओं मेंभी ब्राह्मणसृजन की ऊष्मा इतनी तीव्रता से उफने कि ब्राह्मण था फटकर बिखर जाय वह पूरे अंतरिक्ष इसलिए मेरी आस्था मेंसबसे पहलेजिस तरह से किसान बिखेरता खेतों में बीजउगें छोटे-बड़े ग्रह-उपग्रहनिर्मित हो नया-नया ब्रह्मांडईश्वर को स्थापित किया गया
इस बारसर्वशक्तिमान है ईश्वरउपग्रहों ईश्वर की ईच्छा के चक्कर काटें ग्रहविरूधग्रहों का सूर्यकुछ भी संभव नहीं हैहिमालय पिघलकर समुन्द्र बन जायईश्वर ने ही बनाया हैसमुन्द्र हराभरा नदियाँ-पेड़-पहाड़ और -धरती-खेत-जीव-जन्तुदक्षिणी ध्रुव रेगिस्तान में बदल जायइन ईश्वरी मुहावरों मैं दिमाग तक डुबोकर रखा गया मुझे
पेड़विद्यालय जाने के लिएघर के बाहरजब रखा पहली बार कदमसबसे पहले मंदिर ले जाया गयामंदिर में ईश्वर के क्लोन नेंचढ़ावे के अनुपात में आशीर्वाद दियाइसी आशीर्वाद सेमैं सीख पाया ककहराअतः ककहरा सीखते हीधर्मग्रन्थों को पढ़ना मेरी नैतिक विवशता थी औरउनको कण्ठस्थ करना अनुवांशिक परम्पराधर्म के इसी घटाटोप में हर रोजनये-पौधे मनुष्यों नये ईश्वरों ने मेरे दिमाग और दिल में जगह बनाना शुरू कर दियाइस तरह से किशोरावस्था तकमेरी चेतना मेंतैंतिस करोड़ देवी-देवताओं का वास हो गया इतनी विशाल ईश्वरी सत्ता की चका चौंध में हतप्रभ मैंआस्था के बिल्लौरी काँच पर हाथ घुमाते-घुमातेनिकम्मा होता जा रहा था ईश्वर की कठपुतली होने का आभासमन में इस तरह चलें फिरेंसे घर कर गया था किचिड़ियाँ समुन्द्र मेरे शरीर की सारी कोशिकाओं के जीवद्रव्यधीरे-धीरे ईश्वर के अधीन हो रहे थे गीता से लेकर हनुमान चालिसा तकसंकट मोचक थे मेरे पासतंत्र और सिद्धियों के तमाम चमत्कारमेरी आँखों के पलकों पर चिपके हुए थेसिर पर ईश्वर के क्लोनों के वरदहस्त थेमंदिरों की कतारें बिछीं हुयीं थीं गली-गलीफिर भी ब्रह्मांड के हाशिए पर दुबका मैंअपने संशयो में तैरेंसबसे ज्यादा असुरक्षित थामछलियाँ बढ़ रही थी मेरी उम्रघट रही थी सोचने-समझने की क्षमता एक नागरिक की हैसियत सेजब दाखिल हुआ इस समाज में देखा लोग भूखों मर रहे थेईश्वर टनों घी से स्नान कर रहे थेलाखों लोगों की कत्ल हो रही थीईश्वर अपने अंकवारी पकड़कर बैठे हुए थे जन्मभूमिहजारों द्रौपदियाँ, लाखों सुग्रीव और विभीषन गुहार लगा रहा थेईश्वर चैन की वंशी बजा रहे थेछप्पन भोग लगा रहे थेमगन थे देवदासियों के नृत्य मेंमैं इन्तजार कर रहा था किअभी आसमान से उतरेंगे मुस्कराते हुएऔर अपनी हथेली में समेट ले उड़ें मछुए जाऐंगे दुःखों के पहाड़ कभी भी किसी वक्त प्रकट हो जाएगा सुदर्शन चक्र और सारे अत्याचारियों के सिर धड़ से अलग कर देगाकरोड़ों-करोड़ बाण सनसनाते हुए आऐंगे और नष्ट कर जाऐंगे सारे विध्वंसक हथियार इन्तजार करते-करते मैं थक गया हूँअब बहुत कम दिन बचे हैं मेरी उम्र केइस दुनिया से बाहर होने से पूर्वईश्वरी पहेली सुलझाने की जाल गरज सेआकाश एक बार फिर पलट रहा हूँसारे घर्मग्रन्थों और इतिहास के पन्ने औरअपने गुणसुत्रों की अनुवांशिक प्रवृत्तियों परशोध कर रहा हूँइतिहास की दराज से निकाल रहा हूँलम्बे-लम्बे जुमलेअनन्त तक फैली संस्कृतियों औरपाताललोक तक जड़ फैलायी परम्पराएं समय की सतह पर सरकते हुएमैं जिस मुकाम पर पहुँचा हूँयह एक गुफा हैजिसमे अंधकार ही अंधकार है और इसकी दीवारों परब्रेल लिपि मेंलिखा हुआ है इतिहासमनुष्यों ब्रेल लिपि में लिखे हुए इस इतिहास को पढ़ने की क्षमता हासिल किया और मर गयीं उंगलियों की पोरों की कोशिकाएंआखिरी कोशिका के मरने से ठीक एक क्षण पहले तकमैंने पढ़ा जब जंगल और गुफाओं से पहली बार निकले मनुष्य बहुत सारे मनुष्यलग गए इस दुनिया को सजाने-संवारने मेंकुछ लोग जो नहीं कर सकते थे यह कामवे ईश्वर की रचना में लग गए ईश्वर की रचना में हीबने चार वर्ण सबसे पहला वर्ण ब्राह्मणों का स्मृतिलोप ब्राह्मण ईश्वर के सबसे करीबी ईश्वरी संरचना के सारे सूत्र इनके पासईश्वरीय ज्ञान के गुरूयही इनकी रोजी-रोटी का जुगाड़अतः ईश्वर की सबसे पहली अवधारणाब्राह्मणों ने दिया क्षत्रिय धरती पर ईश्वर के पूरकराजा-महाराजा, अन्नदाताइन्होंने बनवाए बड़े-बड़े मंदिरकिए भव्य धार्मिक अनुष्ठानजितनी बढ़ी महिमा ईश्वर कीउतना ही फले-फूले क्षत्रियअतः ईश्वरीय सत्ता के संस्थापक तीसरा वर्ण वैश्यों कावैश्य ठहरे पूँजीपति-व्यापारीइन्होंने सबसे ज्यादा ईश्वर का ही व्यापार कियाअतः ईश्वरीय सत्ता समृद्ध और व्यापक हुई अंतिम वर्ण शुद्रों काजो जनसंख्या में बाकी वर्णो के योग से कई गुना ज्यादेशुरू से लगे हुए थे इस दुनिया को सजाने-संवारने मेंइन्होंने ही बनाया दुनिया को इतना ºÉ¨¨ÉÉä½úþ और सुन्दर ईश्वरीय सत्ता मेंये ही रहे सबसे ज्यादा दलित-दमित इस शोधपत्र के निष्कर्ष परमेरी लम्बी-चौड़ी अनुवांशिक समझसिकुड़कर लिजलिजी हो जायगयी है इतिहास डूब जाय प्रलय की बाढ़ के दलदल मेंनाक तक धंस गया हूँ और हवा में लहराते हुए मेरे बालसूरज में उलझ गए हैं अब मैं चाहता हूँ किईश्वर के भार से चपटा हुए शरीर को छोड़करकबूतर बन जाऊँमंदिर की मुंडेर पर बैठकरगुटरगूं-गुटरगूं करूं ।
फिर नए सिरे से पहचाने जाएं
जंगल-पेड़-पहाड़-जीव-जंतु
निर्मित हो नई-नई भाषा
नए-नए शब्द आएँ जीवन में
नई शताब्दी में विकसित हो नई-नई जीवन शैली।
</poem>