Changes

नई शताब्दी / प्रदीप मिश्र

75 bytes added, 16:55, 13 दिसम्बर 2010
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=प्रदीप मिश्र|संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>'''नई शताब्दी''' 
एक बार फिर
किसी आकाशीय पिंड के हृदय में
सृजन की ऊष्मा इतनी तीव्रता से उफने उफ़ने कि
फटकर बिखर जाय वह पूरे अंतरिक्ष में
जिस तरह से किसान बिखेरता खेतों में बीज
उपग्रहों के चक्कर काटें ग्रह
ग्रहों का सूर्य
हिमालय पिघलकर समुन्द्र समुद्र बन जायसमुन्द्र हराभरा समुद्र हरा-भरा पहाड़ और
दक्षिणी ध्रुव रेगिस्तान में बदल जाय
पेड़-पौधे मनुष्यों की तरह चलें फिरें
चिड़ियाँ समुन्द्र समुद्र में तैरें
मछलियाँ ले उड़ें मछुए की जाल
आकाश में
इतिहास डूब जाय प्रलय की बाढ़ में
फिर नए सिरे से पहचाने जाएंजाएँ
जंगल-पेड़-पहाड़-जीव-जंतु
निर्मित हो नई-नई भाषा
नए-नए शब्द आएँ जीवन में
नई शताब्दी में विकसित हो नई-नई जीवन शैली।शैली ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits