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ज़ीस्त उम्मीद के साए में ही पलती रहती
ज़ख्म कैसे एक पल को भी हों भर जाते हैं रफ़्ता रफ़्ताअगर तेरा सहारा मिलता ज़िंदगी ठोकरें खा- खा के, भी संभलती रहती
फ़र्ज़ दुनिया के निभाने में गुज़र जाए जाते दिन
और हर रात तेरी याद मचलती रहती
पाँव फैलाए अँधेरा है हर इक कोने घरों में, फिर भी ज्योति शम्म: हालाँकि हर इक बाम पे जलती रहती
शांत दिखता है समुन्दर भी लिए गहराई
जब के कि नदिया की लहर खूब उछलती रहती
तू अगर होती खिलौना तो बहुत बेहतर था
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